भारत के उत्पादन उद्योग की ग्लोबल वॅल्यू-चेन में सुधरती स्थिति

वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएं अब एक वास्तविकता बन गई हैं। ऑटो कंपोनेंट्स और जेनेरिक फॉर्मूलेशनस के क्षेत्र में भारत इसका हिस्सा है। आप वैश्विक मूल्य श्रृंखला (ग्लोबल वॅल्यू चैन या जीवीसी) में तब तक शामिल नहीं हो सकते हैं, जब तक कि आपकी तकनीक, और उत्पादन क्षमता उस स्तर की न हों। यह बात पिछले साल वाणिज्य और उद्योग मंत्री के रूप में प्रभार लेने पर सुरेश प्रभु ने कही थी।

August 21, 2018

विश्व व्यापार का लगभग दो-तिहाई हिस्सा ग्लोबल वैल्यू चेनस (जीवीसी) का है; भारत को प्रति वर्ष सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि करते हुए 5,000 अरब अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए, जीवीसी में अपनी भागेदारी बढ़ाना बहुत महत्वपूर्ण होगा।

ओईसीडी ट्रेड इन वैल्यू एडेड (टीआईवीए), जो वैश्विक व्यापार में अग्रणी देशों की क्रमवार सूची तय्यार करता है, के आंकड़ों के अनुसार, जीवीसी में भारत की भागीदारी जो 1995 में 57वें स्थान पर थी, सुधरकर 2009 में 45वें स्थान पर आ गई।

भारत में मध्यवर्ती उत्पादों और सेवाओं के आयात में से 27.5 प्रतिशत (मूल्य के आधार पर) उत्पाद बाद में निर्यात का हिस्सा बने, जो 2009 में दर्ज 23.5 प्रतिशत से अधिक है।

वर्तमान जीवीसी में भागीदारी बढ़ाने के अलावा, भारत अपने स्वयं के जीवीसी और/या क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाएं (आरवीसी) शुरू करने पर भी विचार कर सकता है, जो क्षेत्रीय व्यापार में अपनी क्षमता का ज्यादा से ज्यादा लाभ उठाने में मदद करेगा।

अप्रैल 2015 में भारत सरकार द्वारा घोषित पांच साल की विदेश व्यापार नीति (एफटीपी) का लक्ष्य विश्व व्यापार में भारत की भागीदारी को बढ़ाना और निर्यात में घरेलू मूल्य संवर्धन में वृद्धि करना है। वित्तीय वर्ष 2014-15 और 2015-16 के दौरान निर्यात में आई कमी के बाद, पिछले दो सालों में भारत का उत्पाद निर्यात लगातार वृद्धि अर्जित करते हुए 2017-18 में 303.4 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है। उत्पाद निर्यात के अलावा, 2017-18 में 174.8 अरब अमरीकी डॉलर की सेवाओं के निर्यात के बाद भी, 2020 तक 900 अरब अमेरिकी डॉलर के कुल निर्यात का भारत का लक्ष्य अभी भी बहुत दूर है। यह देखते हुए की विश्व व्यापार में लगभग दो-तिहाई योगदान ग्लोबल वैल्यू चेन (जीवीसी) में निर्मित उत्पादों का है, भारत को एफटीपी द्वारा निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जीवीसी में अपनी भागीदारी को बढ़ाना होगा। स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गयी अनेक परियोजनयों – जैसे मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया और स्टार्टअप इंडिया – के चलते जीवीसी में भारत की भागीदारी में तेजी से सुधार आया है।

इस बीच, स्मार्ट समाधानों और उत्पादों के लिए उत्पादन के बढ़ते सर्विफिकेशन, ने भारत को अपनी परंपरागत सॉफ्टवेयर क्षमताओं के कारण विशिष्ट लाभ मिला है। इसी का परिणाम है कि, ओईसीडी ट्रेड इन वैल्यू एडेड (टीआईवीए), जो वैश्विक व्यापार में अग्रणी देशों की क्रमवार सूची तय्यार करता है, के आंकड़ों के अनुसार, जीवीसी में भारत की भागीदारी जो 1995 में 57वें स्थान पर थी, सुधरकर 2009 में 45वें स्थान पर आ गई।

ओईसीडी डब्ल्यूटीओ रिपोर्ट – ट्रेड इन वैल्यू एडेड: भारत (अक्टूबर 2015) के अनुसार पिछले दो दशकों में भारत ने ग्लोबल वैल्यू चेन में अपनी भागीदारी में बड़ा सुधार किया है। भारत के निर्यात में विदेशी अंश जो 1995 में 10 प्रतिशत से भी कम था, 2011 में दोगुनी से भी अधिक वृद्धि के साथ 24 प्रतिशत हो गया। ब्रिक्स देशों की अर्थव्यवस्थाओं में यह चीन के बाद दूसरी सबसे ज्यादा वृद्धि है। इसके अलावा, रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 2011 में भारतीय उत्पादकों का निर्यात की ओर रुझान (27.1 प्रतिशत), 1995 के मुकाबले लगभग दोगुना था और अब ब्रिक्स अर्थव्यवस्थाओं में इसका तीसरा स्थान है।

भारत में मध्यवर्ती उत्पादों और सेवाओं के आयात में से 27.5 प्रतिशत (मूल्य के आधार पर) उत्पाद बाद में निर्यात का हिस्सा बने, जो 2009 में दर्ज 23.5 प्रतिशत से अधिक है। इनमे सबसे ज्यादा हिस्सा उन उत्पादों का था, जो अन्य कहीं वर्गीकृत नहीं थे (इनमें रत्न और आभूषण शामिल हैं)। सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रॉनिक्स के साथ ही अन्य परिवहन की क्रमश: 48.3 प्रतिशत, 37.7 प्रतिशत और 36 प्रतिशत हिस्सेदारी रही। टेक्सटाईल्स, एक ऐसा श्रम-केंद्रित क्षेत्र है जिसमे भारतीय निर्यात परंपरागत रूप से विकसित रहे हैं. इस क्षेत्र में भारत का मज़बूत प्रदर्शन जारी रहा और टेक्सटाईल वैल्यू-चेन में भारत की भागीदारी 13वें स्थान पहुँच गयी है। राष्ट्रमंडल सचिवालय के ट्रेड कॉम्पीटीटिवनेस सेक्शन ने 2016 में, भारत सरकार के अनुरोध पर एक अध्ययन किया, जिसके आधार पर भारत को स्वयं जीवीसी स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया गया, क्योंकि ऐसा करने से न केवल विश्व व्यापार में भारत की हिस्सेदारी बढ़ेगी, बल्कि भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धा में सुधार आएगा।

उपरोक्त अध्ययन ने शीर्ष 50 बाजारों में 35 उत्पादों की सूची तय्यार की, जिसमे भारत अपने निर्यात में 23 अरब अमेरिकी डॉलर तक की वृद्धि कर सकता है। ऐसा करने के लिए भारत को 20 सबसे कम विकसित देशों (एलडीसी) से 129 इनपुटस की प्रतिस्पर्धी खरीद के लिए स्वयं की जीवीसी स्थापित करनी होंगी । इसके अलावा, वाणिज्य मंत्रालय 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने के सरकार के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भारतीय किसानों को जोड़ने के लिए कृषि निर्यात नीति तैयार कर रहा है। विशेषज्ञों द्वारा भारत के लिए एक और प्रस्ताव सुझाया गया है, जिसके तहत क्षेत्रीय देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों का लाभ उठाते हुए पड़ोसी देशों के बीच रीजनल वैल्यू चेन (आरवीसी) को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। उदाहरण के तौर पर, बे ऑफ बंगाल इनीशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन (बिम्सटेक) के तहत म्यांमार, भारत, श्रीलंका और थाईलैंड में रत्न और आभूषण उत्पादन की क्षमता को देखते हुए, इस क्षेत्र में इन देशों के बीच सहयोग हो सकता है।

इसी प्रकार, बांस के उत्पादों, जैसे फर्नीचर, कपड़ा और कलाकृतियों, के क्षेत्र में उत्तरपूर्वी भारत और म्यांमार, थाईलैंड और भूटान के बीच एक आरवीसी हो सकती है। हर्बल उत्पादों में, नेपाल, भारत और भूटान के बीच आरवीसी हो सकती है। गारमेंट्स के लिए, श्रीलंका, बांग्लादेश और भारत के बीच आरवीसी की एक बड़ी संभावना है। चमड़े के सामान में, भारत, बांग्लादेश और थाईलैंड के बीच आरवीसी की संभावना है। एक बार आरवीसी स्थापित हो जाने के बाद, पूरी तरह तैयार उत्पादों का विश्व स्तर पर निर्यात किया जा सकता है। आरवीसी में भागीदारी के माध्यम से प्रौद्योगिकी, उत्पादन प्रक्रिया और उन्नत व्यापारिक ढांचे का गठन भारत को जीवीसी की कड़ी आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम बना
सकता है। शीघ्र ऐसे कदम उठाने की आवश्यकता उन संभावनाओं को देखते हुए और भी बढ़ जाती है, जिसमें भारत के कुछ प्रमुख बड़े बाजार जल्द ही ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) एग्रीमेंट जैसे बड़े क्षेत्रीय एफटीए का हिस्सा हो सकते हैं, जिसमें भारत शामिल नहीं हैं।
व्यापार करने में आसानी के विश्व बैंक के सूचकांक पर भारत की बेहतर रैंकिंग से व्यापार और निवेश के लिए एक आकर्षक केंद्र के रूप में खुद को स्थापित करने के भारत के प्रयासों को प्रोत्साहन मिला है।

लेकिन, जीवीसी या आरवीसी में भी एक महत्वपूर्ण सहभागी बनने के लिए अन्य कई मोर्चों पर और अधिक काम करने की आवश्यकता है, जैसे विश्व स्तरीय व्यापार-संबंधित भौतिक आधारभूत संरचना, व्यापार तंत्र और सहायक सेवाएँ, टैरिफ, मानकों का अनुपालन आदि। जीवीसी और आरवीसी में बेहतर एकीकरण न केवल निर्यात बढ़ाने में मदद करेगा, बल्कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र को भी बढ़ावा देगा, और पूरी अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा। यह संयुक्त राष्ट्र द्वारा किए गए एक अध्ययन में प्रमाणित किया गया है, जिसमे पाया गया है कि जीवीसी प्रणाली में भागीदारी और प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर के बीच सकारात्मक सहसंबंध है। भारत का प्रति वर्ष सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि करते हुए 5,000 अरब अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए, जीवीसी में भागेदारी बढ़ाना बहुत महत्वपूर्ण होगा।

Recent Articles

Google, Adani and Airtel join forces to build India’s largest AI data centre in Vizag

October 15, 2025

Andhra Pradesh aims to host 6 GW of data-centre capacity …

Read More

India’s trade deficit widens to US$28 billion in September amid gold import surge

October 14, 2025

India’s merchandise trade deficit is estimated to have widened to …

Read More

Sugar exports touch 7.75 lakh tonnes; trade body seeks early quota for new season

October 13, 2025

ndia is estimated to have exported 7.75 lakh tonnes of …

Read More